Nirala

छायावाद के एक प्रमुख स्तंभ और मुक्तछंद के प्रवर्तक

Premchand
Munshi Premchand

आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के अविचल पुरोधा

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जयशंकर प्रसाद 

जयशंकर प्रसाद कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार, तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को योग्य कृतियाँ दीं…

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ 

‘निराला’ ने छायावाद से आगे बढ़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित की। अपने समकालीन कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछन्द के प्रवर्तक भी माने जाते हैं…

मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी भी दी थी। ‘साकेत’ उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है…

शागान मुखर्जी

वाराणसी में जन्म, प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में, और उत्तर प्रदेश में चित्रकला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई—पेशे से ग्राफ़िक डिज़ाइनर रहे शागान विभिन्न मीडिया संस्थानों में उच्च पदों पर लम्बे समय तक कार्यरत रहे। इधर कुछ वर्षों से वे कला और साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में पुनः सक्रिय हो गए हैं। पिता करुणानिधान मुखर्जी अपने समय के मूर्धन्य चित्रकार, कवि, और कहानीकार थे। शागान उन्हीं की विरासत को आगे ले जाने की दिशा में प्रयासरत हैं।

दीपक कुमार

दीपक उस पीढ़ी से आते हैं जिसने “भारत” और “इंडिया” दोनों को प्रचुरता से देखा, जिया, और भोगा है। उनका बचपन बिहार के छोटे शहरों, कस्बों, और गाँवों में बीता जबकि वयस्क जीवन महानगरों में व्यतीत हुआ है। साहित्य से गहरा लगाव होने के साथ-साथ वे लम्बे समय से हिंदी व अंग्रेजी पत्रकारिता (आई० टी०), मार्केट रिसर्च, तथा लेखन में भी सक्रिय रहे हैं। उनकी रचनाओं में इन विभिन्न पृष्ठभूमियों का समावेश और समायोजन स्पष्ट दिखाई देता है।

बाई (कहानी)

– शागान  मुखर्जी –

“भाभी, मैं कल से नहीं आऊंगी,” सुशीला ने काम ख़त्म करके जाते हुए कहा।
नमिता ने एकदम चौंककर पूछा, “क्यों?”
“वो भाभी मैं पेट से हूँ,” सुशीला ने शरमाते हुए कहा।
“अच्छा,” नमिता ने संशय से सुशीला की तरफ देखा, “तुझे देखकर लगता तो नहीं है….कितने महीने हुए”?
“अरे भाभी कल ही तो पता चला है शाम को…आज डॉक्टर के पास जाना है,” सुशीला मुस्कुराते हुए बोली, “पर आप चिंता मत करो, मेरी भतीजी है न सविता, वो आ जाएगी कल से”।
नमिता ने राहत की सांस ली, “ठीक है। अपना ख़याल रखना।”
अगले दिन सुबह सुशीला वापस आ गई।
नमिता ने हैरान होते हुए पूछा, “अरे, तू कैसे आ गई? सविता को आना था ना?”
सुशीला थोड़ा रुआँसी होकर बोली, “वो भाभी रिपोर्ट ग़लत थी…”

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