दीपक कुमार

 

दीपक कुमार

(१९६४ – वर्तमान)

दीपक उस पीढ़ी से आते हैं जिसने “भारत” और “इंडिया” दोनों को प्रचुरता से देखा, जिया, और भोगा है। उनका बचपन बिहार के छोटे शहरों, कस्बों, और गाँवों में बीता जबकि वयस्क जीवन महानगरों में व्यतीत हुआ है। साहित्य से गहरा लगाव होने के साथ-साथ वे लम्बे समय से हिंदी व अंग्रेजी पत्रकारिता (आई० टी०), मार्केट रिसर्च, तथा लेखन में भी सक्रिय रहे हैं। उनकी रचनाओं में इन विभिन्न पृष्ठभूमियों का समावेश और समायोजन स्पष्ट दिखाई देता है।

अँधेरा

अन्धकार रात का
बड़ा मनहूस है।
निराशा की कालिख से पुता हुआ
भयानक भी—
जैसे निगल लेने को उद्दत
कोई दानव डटा हुआ।
हाँ, अँधेरे के इस कोहरे के पीछे कहीं छुपा है
रौशनी का सूरज
जो आशा की किरणों से भर देता है जग
अँधेरे को चीर क्षितिज पर चमकता है जब
यह भी, कि —
रात के घुप्पे के बाद
सुबह का सूरज जरूर आता है।
पर इसका क्या करें कि तबतक
चुक जाता है धैर्य
और मर चुकता है उत्साह?

दीपक कुमार की रचनाएँ

Deepak poems
मच्छर
प्रसिद्धि
विकास
इतिहास
धूल
गोल चक्कर
धैर्य
कर्म
कवि