अँधेरा
अन्धकार रात का
बड़ा मनहूस है।
निराशा की कालिख से पुता हुआ
भयानक भी—
जैसे निगल लेने को उद्दत
कोई दानव डटा हुआ।
हाँ, अँधेरे के इस कोहरे के पीछे कहीं छुपा है
रौशनी का सूरज
जो आशा की किरणों से भर देता है जग
अँधेरे को चीर क्षितिज पर चमकता है जब
यह भी, कि —
रात के घुप्पे के बाद
सुबह का सूरज जरूर आता है।
पर इसका क्या करें कि तबतक
चुक जाता है धैर्य
और मर चुकता है उत्साह?