गोल चक्कर
देहातों में
मनुष्य औरों को (और स्वयं को भी)
खूब पहचानता है।
क़स्बों और छोटे शहरों में
यह पहचान
धुंधला जाती है।
और,
महानगरों में तो
खो ही जाती है—जो कि,
सभ्यता के चरमोत्कर्ष का मंचन है।
पर,
यही तो आदिम युग का भी लक्षण है।
तो फिर,
क्या मनुष्य जहाँ से चला था
फिर वहीँ पहुँच गया है?
जरूर वह किसी गोल चक्कर में घूम गया है।