पट्टी
हत्या किसी के अरमानों की
होती देखी है कभी ?
कैसे देखोगे भला !
तुम्हारी तो आँखों पर बंधी है एक पट्टी
जिसके आर-पार तुम्हें वही चीज है दिख सकती
जो तुम्हारी दबी भावनाएँ न जगाये
और तुम्हें सचमुच का मानव बनने से बचाये
और पट्टी बाँधने वालों की भी तो
कुछ ऐसी ही थी कामना,
कि इसे उतारने की कल्पना ही उत्पन्न करती है तुममें
असुरक्षा की एक भावना
इस भावना ने तुम्हारे मानस को
इतना जकड़ रखा है,
कि गाँठ खोलने की जगह तुमने उसे
कसकर पकड़ रखा है।
तुम्हें तो यह पट्टी पारदर्शी नज़र आती है
और तुम्हारी आँखों को बस धूल से बचाती है
पर असल में तुम्हें यह सच देखने से है रोकती
और तुम्हारी आँखों में बस धूल ही है झोंकती
मसलन,
ताज़ा भावनाओं सा वो हरा पत्ता
जो अभी कितना कोमल था दिखता
उसे तुमने सूखा जान कुचल डाला
क्योंकि इस पट्टी ने तुम्हें धोखे में डाला
अरमानों की न जाने कितनी खिलती कलियों की तुम्हारे हाथों ने
हत्या कर डाली बातों-बातों में।
इन भयावह हत्याओं ने
बहुतों को इतना डरा डाला
कि अपने अरमानों का गला उन्होंने खुद ही दबा डाला
पर तुम्हें इन बातों का शायद पता नहीं
क्योंकि तुम्हें कुछ दिखा जो नहीं।
पट्टी के इस अंधेपन से तुम
जबतक मुक्ति नहीं पाओगे
तबतक रोज़ नई हत्या
करते ही जाओगे।