विकास
बेचारा मानव!
शताब्दी के अंत को
अपनी प्रगति का द्योतक मानकर प्रसन्न होता है
अपनी गत उपलब्धियों पर गर्व करता है
और अगली सदी में विकास की मात्रा तय करता है।
इस बात से अनभिज्ञ—
कि शताब्दियों का अंत शायद
एक विनाश का संकेत है
जीवन के क्रमशः ह्रास का सन्देश है
और भला,
यह विश्वास भी क्या,
कि मनुष्य पूरा जीवन जी ही पाए?
क्या आश्चर्य जो ब्रह्माण्ड के महाभारत में
पृथ्वी ही हिरोशिमा बन जाये !