दीपक कुमार

 

दीपक कुमार

(१९६४ – वर्तमान)

दीपक उस पीढ़ी से आते हैं जिसने “भारत” और “इंडिया” दोनों को प्रचुरता से देखा, जिया, और भोगा है। उनका बचपन बिहार के छोटे शहरों, कस्बों, और गाँवों में बीता जबकि वयस्क जीवन महानगरों में व्यतीत हुआ है। साहित्य से गहरा लगाव होने के साथ-साथ वे लम्बे समय से हिंदी व अंग्रेजी पत्रकारिता (आई० टी०), मार्केट रिसर्च, तथा लेखन में भी सक्रिय रहे हैं। उनकी रचनाओं में इन विभिन्न पृष्ठभूमियों का समावेश और समायोजन स्पष्ट दिखाई देता है।

विकास

बेचारा मानव!
शताब्दी के अंत को
अपनी प्रगति का द्योतक मानकर प्रसन्न होता है
अपनी गत उपलब्धियों पर गर्व करता है
और अगली सदी में विकास की मात्रा तय करता है।
इस बात से अनभिज्ञ—
कि शताब्दियों का अंत शायद
एक विनाश का संकेत है
जीवन के क्रमशः ह्रास का सन्देश है
और भला,
यह विश्वास भी क्या,
कि मनुष्य पूरा जीवन जी ही पाए?
क्या आश्चर्य जो ब्रह्माण्ड के महाभारत में
पृथ्वी ही हिरोशिमा बन जाये !

दीपक कुमार की रचनाएँ

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